Bharat Bandh Alert: किसानों और मजदूर संगठनों की हड़ताल से इन सेवाओं पर पड़ेगा सीधा असर-जानें क्या-क्या रहेगा बंद

Bharat Bandh 2025: कल्पना कीजिए, देश के लगभग 25 करोड़ लोग एक साथ मिलकर अपनी मांगों को लेकर आवाज़ उठाएं. बुधवार को कुछ ऐसा ही नज़ारा देखने को मिल सकता है, जब देश भर के ट्रेड यूनियन और किसान संगठन सड़कों पर उतरेंगे. ये लोग नए श्रम कानूनों और निजीकरण के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करेंगे. इसका सीधा असर हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर पड़ सकता है, क्योंकि बैंकिंग, डाक सेवाएं और सरकारी कंपनियों से जुड़ी कई सेवाएं ठप हो सकती हैं.

मुख्य मांगें: पुरानी पेंशन से लेकर न्यूनतम मज़दूरी तक!

इस हड़ताल के पीछे कई अहम मांगें हैं, जो देश के करोड़ों श्रमिकों और किसानों से जुड़ी हैं:

पुरानी पेंशन योजना (OPS) की बहाली: ये एक ऐसी मांग है जिस पर सरकारी कर्मचारी लंबे समय से ज़ोर दे रहे हैं. वे चाहते हैं कि पुरानी पेंशन योजना को वापस लाया जाए, ताकि रिटायरमेंट के बाद उन्हें सामाजिक सुरक्षा मिल सके.

न्यूनतम मासिक वेतन 26,000 रुपये: श्रमिक संगठन चाहते हैं कि श्रमिकों का न्यूनतम वेतन बढ़ाकर 26,000 रुपये प्रति माह किया जाए. उनका मानना है कि मौजूदा महंगाई में यह राशि जीवन-यापन के लिए ज़रूरी है.

नए श्रम संहिताओं को रद्द करना: सरकार ने चार नए श्रम संहिताएं लागू की हैं, जिनका श्रमिक संगठन विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि ये कानून मज़दूरों के अधिकारों को कमज़ोर करते हैं.

सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण बंद हो: सरकार कई सरकारी कंपनियों का निजीकरण कर रही है, जिसका श्रमिक संगठन विरोध कर रहे हैं. उन्हें डर है कि इससे रोज़गार और श्रमिकों के अधिकार प्रभावित होंगे.

ठेका व्यवस्था (Contract System) ख़त्म हो: श्रमिक चाहते हैं कि ठेका आधारित रोज़गार की जगह स्थायी रोज़गार दिया जाए, ताकि उन्हें बेहतर वेतन और सुविधाएं मिलें.

किसानों की MSP और ऋण माफ़ी: संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) जैसी संस्थाएं किसानों के लिए फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करने और उनके कर्ज़ माफ़ करने की मांग कर रही हैं.

बेरोज़गारी दूर करने के लिए नई भर्तियां: युवा चाहते हैं कि सरकार नई भर्तियां शुरू करे, ताकि उन्हें रोज़गार मिल सके और रिटायर्ड लोगों को दोबारा काम पर न रखा जाए.

मनरेगा की मज़दूरी और दिनों की संख्या बढ़ाना: ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार गारंटी योजना मनरेगा के तहत मज़दूरी और काम के दिनों की संख्या बढ़ाने की मांग की जा रही है.

शहरी बेरोज़गारों के लिए भी मनरेगा जैसी योजना: शहरों में भी बेरोज़गारों के लिए ग्रामीण मनरेगा जैसी कोई योजना लाने की मांग की जा रही है.

शिक्षा, स्वास्थ्य और राशन पर सरकारी खर्च बढ़ाना: आम जनता की मूलभूत ज़रूरतों पर सरकार को ज़्यादा खर्च करने की मांग की जा रही है.

कौन-कौन दे रहा है समर्थन?

इस हड़ताल को कई बड़े श्रमिक संगठन जैसे सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियंस (CITU), इंटक (INTUC), और एटक (AITUC) का समर्थन मिल रहा है. इनके अलावा, संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) और नरेगा संघर्ष मोर्चा जैसे किसान संगठन भी इस आंदोलन में साथ खड़े हैं. CITU के राष्ट्रीय सचिव ए आर सिंधु के मुताबिक, करीब 25 करोड़ संगठित और असंगठित क्षेत्र के श्रमिक इस हड़ताल में शामिल हो सकते हैं.

दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा भारतीय मजदूर संघ (BMS) इस हड़ताल में शामिल नहीं होगा. उनका कहना है कि यह हड़ताल राजनीति से प्रेरित है.

क्या ठप रहेंगी सेवाएं?

हड़ताल का असर कई अहम क्षेत्रों पर दिख सकता है:

बैंकिंग और बीमा: बैंकों और बीमा कंपनियों में काम ठप हो सकता है, जिससे वित्तीय लेन-देन प्रभावित होंगे.

डाक सेवाएं: पोस्ट ऑफिस से जुड़ी सेवाएं भी प्रभावित हो सकती हैं.

कोयला खनन, राजमार्ग और निर्माण: इन क्षेत्रों में भी काम रुक सकता है.

NMDC लिमिटेड और अन्य सार्वजनिक उपक्रम: इन कंपनियों के कर्मचारी भी हड़ताल में शामिल हो सकते हैं.

क्या ये पहली बार है? एक नज़र पिछली हड़तालों पर

यह पहली बार नहीं है जब श्रमिक संगठन अपनी मांगों को लेकर देशव्यापी हड़ताल कर रहे हैं. इससे पहले भी 26 नवंबर 2020, 28-29 मार्च 2022 और 16 फरवरी 2024 को इसी तरह की हड़तालें हुई थीं. ये हड़तालें दर्शाती हैं कि श्रमिक और किसान अपनी मांगों को लेकर लगातार संघर्ष कर रहे हैं और सरकार पर दबाव बनाना चाहते हैं.

यह हड़ताल देश के आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने पर गहरा असर डाल सकती है. देखना होगा कि सरकार इन मांगों पर क्या रुख अपनाती है. क्या आपको लगता है कि यह हड़ताल सरकार को इन मांगों पर विचार करने के लिए मजबूर करेगी?

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